जब आप सब हो संग मेरे, तो मुझे किस बात का डर?

आप सभी की दुआओं से आपके आमदार के रूप में मैंने अपनी जिम्मेदारियों को निभाते हुए पांच साल पूरे कर लिए है।   बीते पांच सालों के बारे में आपसे मुझे कुछ कहना है।  आप सभी के सामने मुझे अपने दिल की बात रखनी है।
जब मैं आमदार बना तब सभी लोगों के मन में बस एक ही बात थी कि ‘सब आमदार एक जैसे होते है’।  पर मैंने इस सोच को बदलने की चुनौती स्वीकारी।  खुदसे एक वादा किया और फैसला किया कि आपके विधानसभा क्षेत्र का चेहरा बदलने के लिए पहले अपनी जानकारियों को, अपने ज्ञान को तेज धार दी।  मुंबई विद्यापीठ से ‘महाराष्ट्र के सामाजिक और धार्मिक आंदोलन’ इस विषय पर शोध पत्र पेशकर डॉक्टरेट की उपाधि हासिल की। इसके पीछे मकसद सिर्फ डॉक्टरेट की पदवी हासिल करना नहीं बल्कि असली मुद्दा था कि उस ज्ञान को मैं अपने विधानसभा क्षेत्र के लोगों की भलाई में कैसे इस्तेमाल कर सकता हू?  सामाजिक आंदोलनों में बड़ी ताकत होती है।  क्लस्टर डेवलपमेंट का मुद्दा सबसे पहले मैंने उठाया और फिर हाथ पर हाथ धरे बैठा नहीं रहा। उसे एक आंदोलन का रूप दिया।  सत्ता में अपनी सरकार होने के बावजूद लाखों लोगों का विशाल मोर्चा मंत्रालय की ओर ले गया।  इच्छाशक्ति और जनशक्ति एकजुट हुई, जिसकी तारीफ खुद मुख्यमंत्रीजी ने भी की।
वैसे मैं एक आम मिडिल क्लास परिवार से हूं।  पर आप सभी की दुआओं से मैं आमदार बना… माननीय शरदचन्द्रजी पवार साहब ने तो मुझे महाराष्ट्र प्रदेश कार्याध्यक्ष तथा महाराष्ट्र शासन में कैबिनेट मंत्री पद की बड़ी जिम्मेदारी से नवाज़ा।  यह सब कुछ बस आपकी वजह से मुमकिन हो पाया है और इस बात का मुझे पूरा एहसास है।  इतनी ऊँची उड़ान भरने की ताकत आपके विश्वास ने ही दी है।  कुछ कार्यकर्ता जब पूंछते है कि, ‘साहब, दिन-रात, चौबीसों घंटे काम करने की एनर्जी आपमें कहां से आती है?’  तो मैं उन्हें अपनी गाड़ी में बैठाकर पूरे मुंब्रा – कलवा का चक्कर लगाकर आता हूं।  राह में मुझे अनगिनत भाई-बंधु इतने भरोसे और अपनेपन के साथ मिलते है, बात करते है मानों खून का रिश्ता हो।  बात करते समय उनकी आँखों में जो भाव आते हैं दरअसल वही मेरी असली ताकत हैं।
आप लोगों ने जिम्मेदारियां इसलिए दी हैं क्योंकि आपको लगता है कि मेरे कंधों में उनका भार उठाने की ताकत है।  आपको लगता है कि मै आपकी मांगों को सभागृह में पूरी शिद्दत के साथ रख सकूंगा,  अगर वे पूरी न हुईं तो उनके लिए जी-जान से लड़ूंगा, आंदोलन करूँगा।  आपको लगता है कि मै इंसानियत को तवज्जो देते हुए, जाति-मजहब से परे फैसले करूँगा।  जब इतनी सारी उम्मीदें मुझसे हों, तो भला मैं चुप कैसे बैठ सकता हू।  मैं भी अपने विधानसभा क्षेत्र के लिए चौबीसों घंटे लगातार काम करता रहा।
आप सभी जानते है कि पांच साल पहले मुंब्रा – कौसा और रेतीबंदर के हालात क्या थे।  मुंब्रा को लेकर लोगों का नज़रियां नकारात्मक था।  मुंब्रा की इस छवि को बदलने की मैंने ठानी।  आज मुंब्रा – कौसा और रेतीबंदर की तस्वीर बदलने में हमें कामयाबी मिली है।  ठाणे मनपा क्षेत्र का अहम हिस्सा होने के बावजूद मुंब्रा सौतेलेपन का शिकार था।   मुंब्रा की पहचान मुंब्रा रेल्वे स्टेशन परिसर को सुधारने का मैंने संकल्प लिया और आप लोगों के सहयोग से आज मुंब्रा रेल्वे स्टेशन परिसर का सुंदरीकरण हो गया है।  यहाँ से रिक्शा, एसटी, टीएमटी बसों की उत्तम सुविधा हुई है।   यह करते हुए वहां काम धंधा करनेवाले लोगों को विश्वास में लेकर पुल के नीचे मैंने उनका पुनर्वसन किया।  आज मुंब्रा रेल्वे स्टेशन परिसर जगमगा रहा है।
मुंब्रा – कौसा में हॉकर्स प्लाजा का निर्माण, मुस्लिम, क्रिश्चियन कब्रिस्तान और हिन्दू शमशान भूमि के लिए पांच एकड़ भूखंड उपलब्ध कराया।  पानी ज़िन्दगी की अहम जरूरत है।  २५ साल पुराने पानी वितरण के सिस्टम और बढ़ती आबादी को ध्यान में रखते हुए मैंने रु. १३० करोड़ की पानी आपूर्ति योजना की मंजूरी ली ताकि भविष्य में पानी के लिए मुंब्रा – कौसा के लोगों को परेशान न होना पड़े।  बिजली की समस्या को लेकर हमेशा परेशान रहनेवाले नागरिकों को भारी लोड शेडिंग का सामना करना पड़ता था।  वह लोड शेडिंग अब जीरो पर आ गई है।  बिजली वितरण की समस्या को सुलझाने के लिए रु. ९५ करोड़ की व्यवस्था कराई।  अब तो यह काम भी अंतिम चरण में है।  सडकों की समस्या से ग्रस्त मुंब्रा – कौसा में एक साथ १०० सडकों के कॉंक्रीटीकरण के काम को मंजूरी ली।  मुंब्रा – कौसा में सांस्कृतिक भवन को मंजूरी ली।  तथा भव्य स्टेडियम के निर्माण कार्य को अंतिम चरण तक पंहुचाया।  अपने क्षेत्र के नागरिकों को बेहतर स्वास्थ सुविधा के लिए १०० बेड के अत्याधुनिक अस्पताल के निर्माण को मंजूरी ली।   नए शौचालय, गार्डन, प्रवेश द्वार, समाज मंदिर, कार्डिएक एम्बुलन्स, बकरा मंडी, आदि अनेक नागरिक कार्य लगातार शुरू रहें।  मुंब्रा वासियों को अनेक बार बिल्डिंगों के गिरने का दर्द झेलना पड़ा है।  ऐसी ही एक दुर्घटना में लोगों की मदद करते हुए एक नौजवान का हाथ जख्मी हो गया।  नौबत हाथ काटने तक की आ गई थी।  मैंने फैसला किया कि इस नौजवान के हाथ को बचाने के लिए पूरा प्रयास करूँगा।  लोगों की मदद के लिए उठानेवाले इस हाथ को बेकार जाने नहीं दूंगा।  मैंने कोशिश की और उसका हाथ सलामत बच गया।  इससे उसके हाथों को ही नहीं बल्कि मेरे हाथों को भी बल मिला।
आपके भी मन में ये इच्छा थी कि मुंब्रा – कौसा की तस्वीर बदलें।  आपके सहयोग की शक्ति को लेकर मैंने पूरी इच्छाशक्ति के साथ काम किया।  आज मुंब्रा की सोच बदल गई है।  यहाँ के विकास संबंधी कामों को करते हुए मैंने कभी भी जात-पात और मजहब के बंधन को बीच में नहीं आने दिया।  अगर इसी तरह मिलजुलकर काम चलता रहा, तो वह दिन दूर नहीं जब मुंब्रा – कौसा नंबर वन बन जाएगा।
स्कूली दिनों में अक्सर मैं सोचा करता था कि जब मैं गणित का एक सवाल हल कर देता हूं, तो दूसरा सवाल हाज़िर हो जाता है, उसे हल कर देता हूं, तो पीछे-पीछे तीसरा भी आ जाता है।  यानी सवालों का सिलसिला लगातार चलता रहता है, व कभी ख़त्म नहीं होता।  ऐसे में आपके सामने दो ही रास्तें होते है।  या तो सवाल को सुलझाओ ही मत ताकि दूसरे सवाल का सामना न करना पड़े और दूसरा रास्ता हैं कि एक सवाल सुलझाने के बाद दूसरे सवाल को सुलझाने के लिए मानसिक रूप से तैयार हो जाओ।  मैंने दूसरा रास्ता चुना।  अब तो मुझे सवालों, मसलों को सुलझाने की एक आदत सी बन गई है।
आमदार पद को ही मैं अपना धर्म समझकर हर मजहब के लोगों के बीच जाकर उनका काम करता हूं।  मेरा ओहदा कोई मायने नहीं रखता, मेरा नाम  कोई मायने नहीं रखता।  अगर कुछ मायने रखता है, तो वो है मेरा काम।  मैं वादे नहीं करता, मैं पहले करता हूं फिर कहता हूं।  इसीलिए आप एक बार मेरे द्वारा किए कामों पर एक नज़र ज़रूर डालें।  इन कामों को मैंने अकेले नहीं बल्कि आप लोगों की मदद से किया है और जब तक जान है आगे भी करता रहूँगा।  आमदार से पहले मैं एक एथलीट हूं।  एक एथलीट की तरह हर बाधा को लांघते हुए मेरी नज़र बस मंज़िल पर होती है।  एक चुनौती ख़त्म हुई नहीं कि दूसरी का सामना करने के लिए तैयार हो जाता हूं।  मेरे विधानसभा क्षेत्र का “हर व्यक्ति मेरा खुदा है, मेरा भगवान है और इंसानियत ही मेरा मजहब”। मैंने किसी के घर-संसार को रस्ते पर आने नहीं दिया और दूंगा भी नहीं।  किसी के घर में अंधेरा राज करे यह भी मुझे मंजूर नहीं।  कई महिलाएं नौकरी करती है। वे अपने बच्चोंको पालनाघर में रखती है।  जिन्हे शाम को लेने के लिए अपने बच्चों के पास जल्दी पहुंचना होता है।  तो अपने बच्चों तक आपको जल्द से जल्द पहुंचाने के लिए गड्ढों और ट्रैफ़िक से मुक्त रास्ते देना मेरी जिम्मेदारी है।  कहते है न कि पक्षी भले ही आकाश में कितना ही ऊँचा क्यों न उड़े, उसका मन हमेशा घोंसलों में अपने बच्चों पर लगा रहता है।  मेरी हालत भी उस पक्षी जैसी ही है।  मैं चाहे जहां भी रहूं, जिस ओहदे पर भी रहूं, मेरा सारा ध्यान अपने विधानसभा क्षेत्र के लोगों की भलाई और इंसानियत पर ही लगा रहेगा और ऐसा मैं अपनी जिंदगी की आखिरी सांस तक करता रहूँगा।
जब आप सब हो संग मेरे,
तो मुझे किस बात का डर। 
हर मंज़िल छू लूंगा, 
मुश्किल चाहे जितनी हो डगर। 
Reminiscing an important day of my life  …

Reminiscing an important day of my life …

The day was 2 years back – 6th September 2012, Wednesday morning. Earlier in August 2012, the Bombay high court had directed the demolition of the slums that stood upon 62 acres of the land owned by the Mafatlal company which was shut down several years ago. These included Vaghoba Nagar, Shanti nagar, Shivaji Nagar, Parsik Nagar, Gholai Nagar and Pounpada – nearly 35,000 slums …

Even the thought of demolishment was scary. It would mean that 35000 hapless slum dwellers would be rendered homeless. I could not just let it happen. At 3 am in the morning, I took the decision to do a rail roko. We went to every hutment in the area to spread the message of the rail roko and urged them to be part of it.

Early in the morning at 7.00 a.m., before the demolition squad could reach the site, all of us with the slum dwellers staged the rail roko at the level crossing gate no. 28 near Kharegaon.

By 9.00 a.m. all of the trains had halted. Not only that all the incoming, long journey trains also halted. The whole system was paralysed. Though we were concerned about the passengers, our cause was bigger than the inconvenience.

At 9.00 a.m. there was a call from Prime Minister’s office to Chief Minister’s office asking for details. Commissioner of Police got a call from C.M. office inquiring on what the matter was. Soon thereafter, we got a message from Government – they promised to intervene and assured us that a stay order would be issued such that no hutments would be demolished.

When the message came, we could not hold our joy – the joy of justice, the joy of having saved lives of thousands of poor people. I climbed onto my car and addressed the joyous mob – every common man has a right to LIVE, and the means to livelihood & sustenance cannot just be destroyed.

I can understand that one or two hours of train disruption would have caused inconvenience to many. I sincerely apologise for the inconvenience. I have been criticised by some, but for me it was a fight for principles, a fight for values. Priority for me was to SAVE LIVES & HOMES of 35,000 people.

Today as I recall one of the most important days of my life, I would like to leave you with a quote I had once read “It takes courage to follow your mind. But it takes everything to follow your heart.”

तुमचे पंख आहेत सोबती, हीच माझी सर्वात मोठी संपत्ती !!!

नमस्कार,

तुम्हा सर्वांच्या आशीर्वादाने माझ्या कारकिर्दीची पाच वर्षे पूर्ण होत आली आहेत. तेव्हा ह्या पाच वर्षांवर थोडे बोलायचं आहे.

मी आमदार बनलो तेव्हा ‘सर्व आमदार सारखेच असतात’ असं लोक म्हणत असत. पण मी आव्हान स्विकारलं. निश्चय केला. माझ्या मतदारसंघाने निवडलेला आमदार इतर चारचौघांपेक्षा निराळा असेल… तो चेहऱ्यापेक्षा नावाने जास्त ओळखला जाईल. माझ्या मतदारसंघातील राजकारणाचा चेहरा बदलण्यासाठी आधी अभ्यासूपणा वाढवला. मुंबई विद्यापीठात “महाराष्ट्रातील सामाजिक आणि धार्मिक चळवळी” प्रबंधाबद्दल पी. एच. डी. मिळवली. फक्त डॉक्टर पद मिरवण्यासाठी नाही तर आपल्या मतदारसंघाच्या पाठीशी प्रबंधातून मिळालेलं ज्ञान उभं करण्यासाठी. सामाजिक चळवळीची ताकद किती असते? क्लस्टर डेवलपमेंटचा मुद्दा सर्वात प्रथम मांडून मी गप्प बसलो नाही. त्याला चळवळीचं रूप दिलं. आपलंच सरकार सत्तेवर होतं. तरीही लाखोंचा मोर्चा मंत्रालयावर नेला. इच्छाशक्ती आणि जनशक्ती एकत्र आली आणि दस्तुरखुद्द मुख्यमंत्रांनी कौतुक केलं.

तसा मी सामान्य मध्यमवर्गीय कुटुंबातला. तुमच्या आशीर्वादाने आमदार झालो… आणि माननीय शरदचंद्रजी पवारसाहेब ह्यांनी तर थेट महाराष्ट्र प्रदेश कार्याध्यक्षपदाची जबाबदारी दिली… आणि नंतर महाराष्ट्राचा वैद्यकीय शिक्षणमंत्री.

सगळं काही तुमच्या आशीर्वादाने झालंय ह्याची मला पूर्ण जाणीव आहे.… तुम्ही देता बळ माझ्या पंखांना आकाशात उडण्याचं … काही कार्यकर्ते विचारतात, ‘साहेब, दिवसरात्र, अष्टोप्रहर हिरीरीने काम करण्याची उर्जा तुमच्यात येते कुठून? मी त्यांना गाडीत बसवतो आणि कळवा फिरवून आणतो ,,, ह्या माझ्या बंधूभगिनींच्या डोळ्यांत पाहिलं ना की जाणवतं ह्यांचा माझ्यावर रक्ताच्या माणसांपेक्षा जास्त विश्वास आहे…

त्यांनी माझ्या खांद्यावर जबाबदारी दिली आहे कारण ते समजतात माझे खांदे त्यासाठी सक्षम आहेत… त्यांना वाटतं की मी मांडू शकतो सभागृहात त्यांच्या मागण्या ठामपणे, वेळ प्रसंगी न्याय मागण्यासाठी त्याच सभागृहात स्वस्थ न बसता मी आक्रोश करू शकतो, करू शकतो आंदोलन मी जातीधर्माच्या पलीकडे पाहून माणसाला ‘माणूस’ म्हणून जगवण्यासाठी. आणि मग अशावेळी थकून भागून, खांदे पाडून कसं चालेल … अहोरात्र केलंच पाहिजे एवढं काम आहे मतदारसंघात,,,

दिवसरात्र एक केलेत तेव्हा कुठे आता दिसतंय ते चित्र बदललंय …

कॅम्पाकोलाचे हाल बघून वाटतं आपल्याला त्यावेळेस सुबुद्धी सुचली आणि रेलरोको वगैरे केला तेव्हा कुठे त्या ३५००० झोपडपट्टीवासीयांकडे लोकांनी करुणेच्या नजरेतून पाहिलं ,, कळवा विभागाला सापत्न वागणूक देण्याऱ्या वीज विभागाला ‘झीरो लोडशेडींग’ राबवण्यास भाग पाडलं. खड्ड्यांच्या रस्त्याचं स्टेशन असं कळवा स्टेशनकडे पाहून हसणारे आता त्याच सुसज्ज कळवा स्टेशनकडे पाहून तोंडात बोटं घालतात… रेल्वेच्या अधिकाऱ्यांशी अविरत पाठपुरावा… पाठपुरावा कसला मी त्यांचा पिच्छा पुरवला असं म्हणा’, तेव्हा रेल्वे रूळांखालच्या विटाव्याच्या बोगद्याचं विस्तारीकरण झालंय आणि लगोलग रस्त्यांचं नुतनीकरणही करून घेतलं. अन्यथा तिथला वाहतुकीचा खोळंबा सुटला नसता. आता हा ठाणे स्टेशनपासून विटावा स्कायवॉक होऊ द्यात.… ४ मिनिटात माणूस ठाणे स्टेशनपासून कळव्यात पोहोचतो की नाही ते बघा. कळव्यात ७२ एकरच्या भूखंडावर सर्व शासकीय कार्यालय एकाच ठिकाणी येणार, कळव्यात आंतरराष्ट्रीय विद्यापीठ येणार.… पारसिक येथील डोंगरावर २५ एकर जागेमध्ये उद्यान उभारणार … आपण सगळे मिळून कळवा नंबर वन करूयात.… महाराष्ट्राची अस्मिता असलेल्या छत्रपती शिवाजी महाराजांचा दिमाखदार पुतळा उभारणी असो, आंबेडकर भवन असो, नाट्यगृह असो, ज्येष्ठ नागरिक भवन असो किंवा नवीन कळवा खाडी पूल असो तुमची कामं करताना जात-धर्म-पंथ असले भेद पाळले नाहीत कधी . शासनाच्या जमिनीवरील घरे व इमारती पाडा असा निर्णय आल्यानंतर मा. उच्च न्यायालयात जाऊन मी त्या निर्णयाविरोधात स्थगिती आणल्यामुळे आजरोजी विटावा, वाघोबा नगर, आतकोनेश्वर नगर, घोलाई नगर, पौंडपाडा या परिसरातील नव्हे तर संपूर्ण ठाणे जिल्ह्यातील लाखो कुटुंबांचे घर – संसार अबाधित रहिले. कळवा-मुंब्रावासियांना इमारत कोसळण्याचं दुःखं अनेकवेळा सोसावं लागलं आहे. एका इमारत दुर्घटनेतील पीडितांना वाचवू पाहणाऱ्या तरुणाचा हात पडझडीमध्ये जखमी झाला होता. हात गमावण्याची पाळी त्याच्यावर आली. मी विचार केला अत्याधुनिक वैद्यकशास्त्र उपलब्ध आहे. मी ह्या तरुणाला अपंग होऊ देणार नाही.

सारी शक्ती पणाला लावली आणि त्याचा हात पूर्ववत केला. त्या हाताने माझं कार्य धष्टपुष्ट बनवलं. काही दिवसांपूर्वीचीच गोष्ट… पावसाळ्याआधी नालेसफाई न झाल्यामुळे पाणी तुंबतं आणि लोकांच्या घरात घुसतं. म्हणून ते काम समाधानकारक झालं की नाही हे स्वतः जाऊन पाहिलं आणि काम नीट झालं नसल्याचं पाहून संबंधित अधिकारी आणि कंत्राटदारांना १५ दिवसांचा अल्टीमेटम दिला. पाणी नळातून यावं, कोणाच्याही दारातून येऊ नये…

शाळेत असताना मला प्रश्न पडायचा की एक गणित सोडवून झाल्यावर दुसरं गणित उभं राहतं, ते सोडवल्यावर तिसरं उभं राहतं. आज त्याचा अर्थ कळतोय की प्रश्न कधीच सुटत नसतात. तुमच्यासमोर दोन पर्याय असतात. एकतर एकच प्रश्न कायमचा समोर ठेवा आणि तिथेच थांबा. दुसरा पर्याय म्हणजे एक प्रश्न सुटला की पुन्हा नव्याने समोर आलेला नवा प्रश्न सोडवायला सुरुवात करा. मी दुसरा पर्याय स्वीकारला, समस्या सोडवत पुढे निघण्याचा मला आता नाद लागला आहे.

आमदारपदाला धर्म मानून मी प्रत्येक धर्म-जातींमध्ये जातो, काम करतो. माझं पद महत्वाचे नाही, नाव महत्वाचे नाही… महत्व द्या माझ्या कामाला. मी आश्वासनांची खैरात केली नाही, करणार नाही. आधी करतो आणि मग बोलतो. म्हणून मी केलेल्या कामावरून जरूर नजर फिरवा. कारण मी ते तुमच्या आशीर्वादाने करत आलो आहे आणि करत राहीन. मी आधी खेळाडू आहे आणि मग आमदार. खरं म्हणजे कोणतेही पद मिळालं तरी मी ऍथलिटच आहे. दिसला अडथळा की पार करून पुढे निघायचं. त्यामुळे एक आव्हान संपलं की माझं लक्ष दुसऱ्या आव्हानाकडे जातं. माझ्या मतदारसंघातील प्रत्येक व्यक्ती हा माझा देव आहे. मानवता हा माझा धर्म आहे. मी कोणाचाही संसार उघड्यावर पडू दिला नाही, देणार नाही. कोणाच्या घरात अंधार असलेला चालणार नाही. अनेक स्त्रिया नोकरी करतात. काहींना पाळणाघरात ठेवलेल्या बाळांपर्यंत वेळेवर पोहोचायचे असतं. ‘घार उडते आकाशी, चित्त पिल्लांपाशी’… तिला पिल्लांपर्यंत झटपट पोहोचण्यासाठी खड्डेमुक्त, ट्रॅफिकमुक्त रस्ते देणे ही माझी जबाबदारी आहे. असं म्हणतात, नेते पाच वर्ष झोप घेतात! इतरांचं जाऊ द्या… मी झोप नाही, ‘भरारी’ घेतली. विविध पदांच्या उंचीवर पोहोचलो, पण ‘घार उडते आकाशी”… अशीच माझी अवस्था राहिली. कुठेही असलो तरी माझं चित्त मतदारसंघातील सामान्य लोकांपाशीच असतं.

तुमचे पंख आहेत सोबती, हीच माझी सर्वात मोठी संपत्ती !!!

मला का वाटेल भवितव्याची भीती.

Lessons from the bye elections results

Lessons from the bye elections results: Dont ever take the Indian voter for granted


The bye elections results to 32 assembly and 3 Loksabha constituencies have once again proved that the Indian voter is very mature when it comes to selecting its representatives and government. 

The BJP, which just 100 days ago had swept Uttar Pradesh, Rajasthan and Gujarat was comprehensively trounced in the first two and ceded ground to Congress in Gujarat. The results proved that the honeymoon period for BJP is over. 

The UP result proved that religious mobilisation does not work with voters. Modi had promised to bring down inflation. 3 months have passed and he has not been able to do so and people are now impatient, awaiting the much tom tommed ‘achche din’. 

The big and bold message from the results is that India wants good governance and not Hindutva rhetoric. That the prices of tomatoes are more important to them than ‘love jihad’.

A Direction-less 100 days

The Modi government came to power 3 months ago by making tall promises to people and creating an impression that whatever the UPA was doing was evil and only the BJP could and would deliver ‘achche din’. So what do we have on our plate after 100 days?

Inflation continues to stay high and the government seems clueless about how to rein in rising prices of vegetables. The failure of the govt to ratify the WTO treaty led to a global outcry that India had scuttled a hard earned international trade agreement and left us isolated. The fanatic elements in the Sangh Parivar have found new strength and are up to their agenda of communalising the atmosphere and creating a sense of insecurity in the minorities while the Prime Minister looks the other way. Mr. Modi is showing signs of running the government like a dictator. He is more obsessed with self publicity and to achieve that goal has no qualms in insulting his cabinet colleagues. Hence, the press is fed with stories of how the PMO rejected the Home Minister’s choice of P.A. or the Foreign Minister is not included in his delegation on trips to other countries. From his paying obeisance to Parliament in front of TV cameras, to cleaning govt offices, and keeping the new minister’s disciplined – everything is done with the single minded objective of boosting the image of Mr Modi. After lying to the people, Modi now carries the burden of unrealistic expectations. People are realising that their daily concerns of price rise, social harmony and Achche Dinare a distant dream.

The people have shown their resentment and answered their discontent by voting against the BJP in the recent bye elections. Stunned by the defeats, the party has resorted to raising communal bogeys like ‘love jihad’ to polarise sentiment. The party should realise that nobody in India can be detached from the constitution which says that ours is a secular republic because people from many shades stay here.

Another issue of poor governance can be seen by the government’s naive attempt to force schools across the country to screen the PM address to students on Teachers Day. The HRD Ministry made this autocratic announcement and later, in face of opposition from the schools, retracted the decision. From hiking the railway fares by over 100% and later retracting, by their I&B Minister stating that the govt had never promised to reduce prices in 100 days, by conveniently forgetting the black money issue, by bullying the UPA appointed governors to submit their resignation to disallowing the claim of the Congress to the Leader of Opposition post, this government has shown its intention to adopt a path of confrontation. And this does not augur well for a democracy.